सारांश
¯बगल नामक एक दलदल में एक मेढक रहता था जिसे गाने का उन्माद था वह सायंकाल से उषाकाल तक गाता ही रहता था। सभी जीव- जंतुओं को जो उस दलदल में रहते थे, उसका गाना अप्रिय लगता था। वे उसे पीटने और उसका अपमान करने का प्रयत्न करते परंतु मेढक बहुत ही संवेदनहीन और बड़बोला था। वह भावावेश में गाता ही रहता।
क्त ठल टपातंउ ैमजी
दिल वेफ उद्गार और उल्लास व्यक्त करने का उसवेफ पास यही एक विकल्प था।
एक दिन दलदल वासियों ने एक मध्ुर और सुरीला गीत सुना जो
एक कोयल गा रही थी। गीत सुनकर मेढक को गहरे सदमे और द्वेष का अनुभव हुआ। वह दलदल का अवेफला और अविवादित गायक बना रहना चाहता था। बुलबुल वेफ गीत ने एक हलचल मचा दी थी। दल-दल वेफ सभी प्राणी बढ़-चढ़कर उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
मेढक बहुत चालाक था। उसने कोयल को अपना परिचय उस वृक्ष वेफ मालिक वेफ रूप में दिया, जिस वृक्ष पर बैठकर बुलबुल गाती थी। उसने शेखी बघारी कि वह एक संगीत आलोचक है जो ‘‘दलदल तुरही’’ वेफ लिए गीत लिखता है।
बुलबुल अत्यंत प्रभावित हुई कि मोजार्ट जैसा प्रतिभाशाली संगीतज्ञ इसमे रूचि ले रहा है। जब मेढक ने बहुत ही साधरण पफीस वेफ बदले उसे संगीत प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव रखा तो बुलबुल को लगा उसवेफ सपने साकार होने जा रहे हैं और बुलबुल का शोषण शुरू हो गया। मेढक ने संगीत समारोह आयोजित करने शुरू कर दिए। खराब मौसम में भी वह बुलबुल को गाने वेफ लिए बाध्य करता। वह उसे भावमग्न होकर गाने को कहता क्योंकि जनता को यही पसन्द था। आरम्भ में वुफछ जीव-जंतु सुनने को जमा हुए परन्तु ध्ीरे-ध्ीरे भीड़ कम होती गई क्योंकि बुलबुल का गीत नित्यक्रम बन कर रह गया था जिसमें कोई रस न था और उसकी आवाश भी थकी सी हो गई थी। मेढक उसे डाँटता और अपमानित करता। एक दिन अत्यंत दबाव व तनाव में बुलबुल की नस पफट गई और उसकी मृत्यु हो गई।
मेढक ने बुलबुल को मूर्ख और उत्तेजना का शिकार बताया और कहा उसवेफ पास मौलिकता नहीं थी। उसका अहंभाव शांत हो गया था और वह दोबारा दलदल का बेजोड़ गायक बन गया था।
In Image